मैं प्रेमचन्द की धनिया...

लोग गोदान की धनिया को बहादुर कहते हैं. हां, इसी रूप में मैंने घर और घूंघट में से समय समय पर अपनी आवाज़ बुलंद की है. बुलंद आवाज़ में बोलना मेरा धर्म रहा है लेकिन आवाज़ तो मेरी थी मगर स्वर वही था जो होरी के कंठ से आना चाहिये था. होरी डरपोक था, मैंने अपनी दिलेरी अर्पण कर दी. औरत पतिव्रता एक ही तरह से नहीं होती, पतिव्रत कितनी कितनी जगह दिखाया जा सकता है यह कोई किसान या मज़दूर औरतों से पूछे. READ MORE
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